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सूफ़ी लेख
फ़िरदौसी - सय्यद रज़ा क़ासिमी हुसैनाबादी
फ़िरदौसी ने शाही सर-परस्ती शुक्रिया के साथ मंज़ूर की और पूरे जोश-ओ-ख़रोश के साथ अश्आ’र नज़्म
ज़माना
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जदीद क़व्वाली पर जोश मलीहाबादी, फ़िराक़ गोरखपूरी और कैफ़ी का असर
मुशाइ’रों में शाइ’र की कामयाबी का दार-ओ-मदार अच्छे कलाम के साथ अच्छे तरन्नुम या तहत-अल-लफ़्ज़ के
अकमल हैदराबादी
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क़व्वाली और अमीर ख़ुसरो – अहमद हुसैन ख़ान
इस पर सितम-ज़रीफ़ी ये कि लि-युज़िल्-ल अ’न सबीलिल्लाह को हज़्फ़ करते हैं हालाँकि उसमे लग़्व बातों
सूफ़ीनामा आर्काइव
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ख़ानक़ाह-ए-फुलवारी शरीफ़ के मरासिम-ए-उ’र्स
इस सुहाने वक़्त की मज्लिस-ए-ममाअ’ वाक़ई’ एक ख़ास असर और अ’जीब लुत्फ़ रख़ती है।इस वक़्त महफ़िल
निज़ाम उल मशायख़
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क़व्वाली और गणपति
गणपति महाराष्ट्र का एक ऐसा त्यौहार है जिसे यहाँ के हिंदू बाशिंदे हर साल चौथी चतुर्थी
अकमल हैदराबादी
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क़व्वाली की ईजाद-ओ-इर्तिक़ा
किसी फ़न की ईजाद-ओ-इर्तिक़ा के बारे में क़लम उठाना उस वक़्त आसान होता है जबकि हम
अकमल हैदराबादी
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हज़रत गेसू दराज़ का मस्लक-ए-इ’श्क़-ओ-मोहब्बत - तय्यब अंसारी
हज़रत अबू-बकर सिद्दीक़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु ने फ़रमाया था:परवाने को चराग़ है, बुलबुल को फूल बस
मुनादी
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क़व्वाली के क़दीम-ओ-जदीद मुक़ाबले
क़व्वाली के मुक़ाबलों : क़व्वाली के फ़नकारों में मुक़ाबलों का रिवाज बहुत पुराना है लेकिन ज़माना-ए-क़दीम
अकमल हैदराबादी
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तज़्किरा शंकर-ओ-शंभू क़व्वाल
क़व्वाली का फ़न किसी मज़हब की मीरास नहीं। हर मज़हब के लोग न सिर्फ़ इस फ़न
अकमल हैदराबादी
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समा के आदाब-ओ-मवाने से का इनहराफ़
हज़रत जुनैद बग़्दादी के समा’अ से आख़िरी उम्र में किनारा-कशी इख़्तियार कर लेने के बा’द समा’अ
अकमल हैदराबादी
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हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया-अपने पीर-ओ-मुर्शिद की बारगाह में
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की उ’म्र अभी 12-13 साल की थी और बदायूँ में मौलाना अ’लाउद्दीन उसूली