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सूफ़ी लेख
गुजरात के सूफ़ी कवियों की हिन्दी-कविता - अम्बाशंकर नागर
जो होवें ज्ञान पुजारीना देखें भाखा गुजरी।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
राखहि कारन करम कराई।उपजै ज्ञान त करम नसाई।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
बार बार ये बचन निवारो। भक्ति-विरोधई ज्ञान तिहारो।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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निर्गुण कविता की समाप्ति के कारण, श्री प्रभाकर माचवे - Ank-1, 1956
ज्ञान समजोन निधोन गेला तेणें जनां पावन केला। आपण ऐसा.
भारतीय साहित्य पत्रिका
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रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
गुरु की साटि ज्ञान का अच्छर बिसरै तो सहज समाधि लगाऊँ
भारतीय साहित्य पत्रिका
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महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय - श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
भक्ति तें मूल ज्ञान ते फल। वैराग्य केवल तेथीं चे फूल।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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सूर के भ्रमर-गीत की दार्शनिक पृष्ठभूमि, डॉक्टर आदर्श सक्सेना
ऊधौ, जान्यौ ज्ञान तिहारौ।जानै कहा राजगति लीला, अन्त अहीर विचारौ।।
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय- श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
भक्ति तें मूल ज्ञान ते फल। वैराग्य केवल तेथीं चे फूल।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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मिस्टिक लिपिस्टिक और मीरा
सुन्दरकांड में सुन्दर है सीता का चरित्र सुन्दर है हनुमान की महावीरता सुन्दर है लंका का
सूफ़ीनामा आर्काइव
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चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
जित इंद्री अरु ज्ञान अपारा। कोट भान कौं सो विस्तारा।।2।।।। दोहा ।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
जय जय सुखद सरस्वती जय गुरु ज्ञान प्रमोद। सुख कँवल्यक कारणे किय वैराग्य विनोद।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
जीवधर्म बोध, पृ. 13 दुष्ट काम उर प्रकटे आयी। ज्ञान विचार बिसरि सब जायी।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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मधुमालती नामक दो अन्य रचनाएँ - श्रीयुत अगरचंद्र नाहटा
राजा पढै ताहिं राजगति, मंत्री पढै तिहि बुद्धि। कामी काम विलास रस, ज्ञानी ज्ञान सुसिद्धि।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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खुमाणरासो का रचनाकाल और रचियता- श्री अगरचंद नाहटा
प्रारस सुगुरु परमेश्वरु लोह हेम कर लेते।।11।। ज्ञान ज्योति सुप्रकास गुरु कर धरी सासत्र कत्थ।