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सूफ़ी लेख
मयकश अकबराबादी जीवन और शाइरी
हज़रत मयकश अकबराबादी की जितनी पकड़ गद्य लेखन पर है उतनी ही संजीदगी और फ़िक्र उनकी
सुमन मिश्रा
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क़व्वाली और फ़िल्म
फिल्मों की क़व्वालियों की तर्ज़ आ’म-पसंद और बोल आम-फ़हम होते हैं। शुरुआती फ़िल्मों में मर्द ही
अकमल हैदराबादी
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समाअ’ और आदाब-ए-समाअ’- मुल्ला वाहिदी देहलवी
आप पत्थर पर लोहे की हथौड़ी मारिए पत्थर से आग निकलेगी इतनी आग कि जंगल के
मुनादी
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पैकर-ए-सब्र-ओ-रज़ा “सय्यद शाह मोहम्मद यूसुफ़ बल्ख़ी फ़िरदौसी”
आवाज़ में इस क़द्र ख़ानदानी तरन्नुम था कि जो आपकी आवाज़ सुन लेता आपकी जानिब मुतवज्जिह
अब्सार बल्ख़ी
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आदाब-ए-समाअ’ पर एक नज़र - मैकश अकबराबादी
फिर भी अगर कोई ख़ुश-इल्हान क़ारी क़ुरआन पढ़ता है तो ये निस्बत दूसरे के पढ़ने के
मयकश अकबराबादी
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क़व्वाली और अमीर ख़ुसरो – अहमद हुसैन ख़ान
इस पर सितम-ज़रीफ़ी ये कि लि-युज़िल्-ल अ’न सबीलिल्लाह को हज़्फ़ करते हैं हालाँकि उसमे लग़्व बातों