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सूफ़ी लेख
उमर खैयाम की रुबाइयाँ (समीक्षा)- श्री रघुवंशलाल गुप्त आइ. सी. एस.
बैठ समीप तान छेड़े, प्रिय, तेरी वीणा-वाणी जो, तो इस विजन विपिन पर वारूँ मिले स्वर्ग सुखदानी जो।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
अब क्या पूछते हो गर्म पकवान आ रहा है, खा रहे हैं झूला झोल रहे हैं।
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
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बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
एक यह भी बात यहाँ ध्यान देने योग्य है कि यदि बिहारी किसी विशेष क्रम से
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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हिन्दुस्तान में क़ौमी यक-जेहती की रिवायात-आ’ली- बिशम्भर नाथ पाण्डेय
यक-जेहती की रिवायत के सिलसिले में ज़बान के मसले पर भी कुछ कहना चाहता हूँ। ज़बान-ए-उर्दू
मुनादी
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महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
पारिवारिक और सामाजिक जीवन के बीच हम सूर के बाल कृष्ण को ही थोड़ा बहुत देखते