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सूफ़ी लेख
ख़्वाजा साहब पर क्या कहती हैं पुरानी किताबें?
ज़िक्र-ए-ख़्वाजा मआ करामात-ए-हारूनी (ज़ब्त अजमेरी)तोहफ़ा-ए-चिश्त (अफ़्ज़ल बदायूनी)
रय्यान अबुलउलाई
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हज़रत शाह-ए-दौला साहब-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
राजा इस फ़रमान के पहुँचने पर कलिमात-ए-मसर्रत-अंगेज़ ख़ुद हज़रत की ज़बान-ए-मोबारक से सुनने के लिए मआ’
सूफ़ी
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हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
एक बार सुल्तान अ’लाउद्दीन ख़िल्जी ने हज़रत बू-अ’ली क़लंदर के पास कुछ नज़्र भेजनी चाही लेकिन
सूफ़ीनामा आर्काइव
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हिन्दुस्तान में क़ौमी यक-जेहती की रिवायात-आ’ली- बिशम्भर नाथ पाण्डेय
“तुम समझते हो कि बरहमन हो, इसलिए मैं तुम्हें तुम्हारी इस दग़ा-बाज़ी के लिए मुआ’फ़ कर
मुनादी
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ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी
क़दीम तज़्किरों से अंदाज़ा होता है कि हज़रत ख़्वाजा क़ुतुब साहिब ने एक से ज़्यादा निकाह
ख़्वाजा हसन सानी
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हज़रत बख़्तियार काकी रहमतुल्लाहि अ’लैह - मोहम्मद अल-वाहिदी
फ़रिश्ता लिखता है कि जिस वक़्त हज़रत ख़्वाजा ख़्वाजा बुज़ुर्ग के मुरीद हुए उस वक़्त आपकी
निज़ाम उल मशायख़
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बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
दिल्ली वाले सैर का इंतिज़ाम तो पूरे साल करते रहते हैं। हाँ तारीख़ मुक़र्रर होने के