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सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
या इलाही चश्म-ए-बीनाई ब-देहदर सरम अज़ इ’श्क़-ए-सौदाई ब-देह
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
निर्गुण कविता की समाप्ति के कारण, श्री प्रभाकर माचवे - Ank-1, 1956
तुकाराम- देह हें देवाचें धन कुबेराचें
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
दोहा जद्यपि सुंदर सुधरकर सगुनौं दीपक देह।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
मीरां के जोगी या जोगिया का मर्म- शंभुसिंह मनोहर
प्रेम में नहीं होती देह की वांछना।तथा-
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
उड़िया में कृष्ण–भक्ति-साहित्य, श्री गोलोक बिहारी धल - Ank-1, 1956
अनल नुहइ देह दहइ अस्त्र नुहइ मरमे भेदइ
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
नेह तज्यो अरु गेह तज्यो,पुनि खेह लगाइ कै देह सँवारी।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता - शालिग्राम श्रीवास्तव
उस्मान कवि कहते हैं—–कौन भरोसा देह का, छाड़हु जतन उपाय।
सरस्वती पत्रिका
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो - तहज़ीबी हम-आहंगी की अ’लामत - डॉक्टर अनवारुल हसन
बरहमने रा ब-देह सोमनात।।ख़स्तगी-ए-सीनः ब-राह-ए-दराज़।
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : ख़्वाजा अमजद हुसैन नक़्शबंदी
दिलम देह हुस्न परवर ताब ओ महताबकि हर ज़र्रा नुमायद जल्वा नाब
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
सब पोथिन कौ तत्व है, भाजन मन करि देह।। (ज्ञान समूह पद्य 7)
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूर के भ्रमर-गीत की दार्शनिक पृष्ठभूमि, डॉक्टर आदर्श सक्सेना
देह गेह सनेह अर्पन कमललोचन ध्यान।सूर उनकौ प्रेम देखैं फीकौ लागत ज्ञान।।
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-आख की बुढ़िया(5) पौन चलत वह देह बढ़ावे। जल पीवत वह जीव गँवावे।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-आख की बुढ़िया (5) पौन चलत वह देह बढ़ावे। जल पीवत वह जीव गँवावे।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी तहज़ीब की तश्कील में अमीर ख़ुसरो का हिस्सा - मुनाज़िर आ’शिक़ हरगानवी
वो दसवीं दलील में कहते हैं।मोहब्बत देह आँ कि चू ख़ुसरो ब-सुख़न ।
फ़रोग़-ए-उर्दू
सूफ़ी लेख
हज़रत शाह बर्कतुल्लाह ‘पेमी’ और उनका पेम प्रकाश
दोऊ जग कूँ कहत है ‘ज़ाहिर बातिन’ रंगदेह-देवरा पूजियो, तामे दोउ तरंग .
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता- शाल़ग्राम श्रीवास्तव
कौन भरोसा देह का, छाड़हु जतन उपाय।कागद की जस पूतरी, पानि परे धुल जाय।।