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सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह अकबर दानापुरी
आपने ज़िंदगी भर किसी से क़र्ज़ ना लिया मगर लोगों को क़र्ज़ –ए-हसना दिया करते थे
रय्यान अबुलउलाई
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हज़रत ख़्वाजा नूर मोहम्मद महारवी - प्रोफ़ेसर इफ़्तिख़ार अहमद चिश्ती सुलैमानी
हम विसाल कराने के लिए आए हैं जुदाई डालने के लिए नहीं आए।और फ़रमाया ख़ैर मेरे
मुनादी
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हज़रत मख़्दूम दरवेश अशरफ़ी चिश्ती बीथवी
मुबारकपुर दरगाह से ही चंद फ़रलाँग शिमाल की जानिब निहायत ही पुर-सुकून और दिल-कश फ़ज़ा में