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सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
जोतिहिं जोति समायो।।1।।तन कियो कुंड पवन कियो घोटना,
हिंदुस्तानी पत्रिका
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रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
(1) ऐसा ध्यान घरौं बनबारी। मन पवन दै सुखमन नारी।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
पवन झकोर दीप जोति ज्यों बुझायगी। कालको चक्रर रे चलैगो चहू और
भारतीय साहित्य पत्रिका
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When Acharya Ramchandra Shukla met Surdas ji (भक्त सूरदास जी से आचार्य शुक्ल की भेंट) - डॉ. विश्वनाथ मिश्र
सीतल मंद सुगंध पवन बहे, रोम रोम सुखदाई।।जमुना-पुलिन पुनीत, परम रुचि, रचि मंडली बनाई।
सम्मेलन पत्रिका
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महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
फूले व्याल दुरेतें प्रगटे, पवन पेट भरि खायो। ऊँचे बैठि विहंग-सभा बिच कोकिल मंगल गायो।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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हाफ़िज़ की कविता - शालिग्राम श्रीवास्तव
रहीम ने इसी को इस प्रकार कहा है—-रहिमन गठरी धरि कै, रही पवन ते पूरि।
सरस्वती पत्रिका
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हिन्दी साहित्य में लोकतत्व की परंपरा और कबीर- डा. सत्येन्द्र
माटी का चित्र पवन का थंमा, व्यंद संजोगि उपाया। भानै घड़ै सँवांरै सोई, यहु गोव्यंद की माया।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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हाफ़िज़ की कविता- शाल़ग्राम श्रीवास्तव
रहिमन गठरी धरि कै, रही पवन ते पूरि।गाँठ युक्ति कै खुल गई, अन्त घूरि कै धूरि।।
सरस्वती पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूर की कविता का आकर्षण, डॉक्टर प्रभाकर माचवे
पवन न भई पताका अंबर, भईं न रथ के अंग।धूरि न भईं चरन लपटातीं, जातीं उहँ लौं संग।।
सूरदास : विविध संदर्भों में
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संतों के लोकगीत- डॉ. त्रिलोकी नारायण दीक्षित, एम.ए., पी-एच.डी.
साई की नगरी परम अति सुन्दर जह कोइ जाय न आतै।। चाद सुरज जह पवन न पानी को संदेस पहुचावै।
सम्मेलन पत्रिका
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पदमावत की लिपि तथा रचना-काल- श्रीचंद्रबली पांडेय, एम. ए., काशी
जायसी ने पदमावत में एक ओर तो भाषा का प्रयोग- “आदि अंत जस गाथा अहै। लिखि
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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जौनपुर की सूफ़ी परंपरा
शर्क़ी शासन जौनपुर का स्वर्ण युग था. विद्यापति ने कीर्तिलता में इब्राहीम शाह शर्क़ी और जौनपुर