आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "पेट"
सूफ़ी लेख के संबंधित परिणाम "पेट"
सूफ़ी लेख
पदमावत में अर्थ की दृष्टि से विचारणीय कुछ स्थल - डॉ. माता प्रसाद गुप्त
(40) 114.1 पेट पत्र चंदन जनु लावा। कुंकुह केसरि बरन सोहावा।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(137) सर पर जाली पेट से खाली। पसली देख एक एक निराली।।-मूढ़ा
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(137) सर पर जाली पेट से खाली। पसली देख एक एक निराली।। -मूढ़ा
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
फूले व्याल दुरेतें प्रगटे, पवन पेट भरि खायो। ऊँचे बैठि विहंग-सभा बिच कोकिल मंगल गायो।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
गिरि गिरि उठै सँभारि सोइ है मरद सिपाही।लरि लीजै भरि पेट कानि कुल अपनि न लावै।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य
गिरि गिरि उठै सँभारि सोइ है मरद सिपाही। लरि लीजै भरि पेट कानि कुल अपनि न लावै।
परशुराम चतुर्वेदी
सूफ़ी लेख
संतों के लोकगीत- डॉ. त्रिलोकी नारायण दीक्षित, एम.ए., पी-एच.डी.
भाई कहै यह भुजा हमारी, नारि कहै नर मेरा। पेट पकरि के माता रोवै, बाह पकरि के भाई।।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
सूफ़ी लेख
हज़रत ग़ौस ग्वालियरी और योग पर उनकी किताब "बह्र-उल-हयात"
सीतली ठंडी हवा से इबारत है। जब सालिक चाहता है कि ज़िक्र-ए-सीतली को अंजाम दे तो
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
जाहरपीरः गुरु गुग्गा, डा. सत्येन्द्र - Ank-2,1956
पापी चेला डसि लए दाता ऐ दर्शन देइ इस गीत के अन्तर्गत ही यह कथा है कि
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बुर्हानुद्दीन ग़रीब
ग़िज़ा:ऊपर ज़िक्र आया है कि तीस साल तक दाऊदी रेज़े रखे । इफ़्तार कभी सिर्फ़ पानी,
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
समकालीन खाद्य संकट और ख़ानक़ाही रिवायात
ग़िज़ाई मसाएल से नबर्द-आज़मा ज़माना की दुनिया की एक दूसरी तस्वीर भी है जो हमारी तवज्जोह