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सूफ़ी लेख
बेदम शाह वारसी और उनका कलाम
जानाना चाहिए दर-ए-जानाना चाहिए
साग़र की आरज़ू है न पैमाना चाहिए
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान
रोज़ मिलता है लबालब एक पैमाना हमें
क़ैस का क्या ज़िक्र उसको तो जुनूँ का जोश था
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
ज़हीन शाह ताजी और उनका सूफ़ियाना कलाम
’इश्क़ में दीदा-ओ-दिल शीशा-ओ-पैमाना बना
झूम कर बैठ गए हम वहीं मय-ख़ाना बना
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
सूफ़ी लेख
सूफ़ी और ज़िंदगी की अक़दार
हर जमाअ’त और हर गिरोह में ऐसे अश्ख़ास भी शामिल होते हैं जिन्हें शुमूलियत के बावजूद