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सूफ़ी लेख
हज़रत शाह नियाज़ बरेलवी की शाइरी में इरफान-ए-हक़
कि यक सर-गोश-ए-आलम पुर-शवद अज़ हाय-ओ-हु-ए-शूरतबरामद हर चे अज़ दिल बर ज़बाँ-हा फ़ाश-गो ऐ दिल
अहमद फ़ाख़िर
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हज़रत मख़्दूमा बीबी कमाल, काको
बिहार में मुसलमानों की आमद से पहले काको में हिन्दू आबादी थी, यहाँ कोई राजा या
रय्यान अबुलउलाई
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"है शहर-ए-बनारस की फ़ज़ा कितनी मुकर्रम"
आस्ताना काफ़ी बड़े इहाते में और बुलंदी पर वाक़े’ है। आपके मज़ार के मुत्तसिल आपके साहिब-ज़ादे
रय्यान अबुलउलाई
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सय्यिद सालार मस्ऊद ग़ाज़ी
‘‘शा’बान 423 हिज्री मुताबिक़1032 ई’स्वी में सालार मस्ऊ’द बहराइच आए थे|उस ज़माने में बहराइच में जंगल
जुनैद अहमद नूर
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ख़्वाजा गेसू दराज़ बंदा-नवाज़ - प्रोफ़ेसर सय्यद मुबारकुद्दीन रिफ़्अ’त
दरिया के किनारे दरख़्त के नीचे एक क़ब्र देखी तो समझा कि ये किसी बुज़ुर्ग की
सूफ़ीनामा आर्काइव
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बक़ा-ए-इंसानियत के सिलसिला में सूफ़िया का तरीक़ा-ए-कार- मौलाना जलालुद्दीन अ’ब्दुल मतीन फ़िरंगी महल्ली
मुनादी
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बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
भला इस जुलूस को देखो और पंखे को देखो। बाँस की खिंचियों का बड़ा सा पंखा
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
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हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतवक्किल
एक सफ़र का वाक़िआ’ हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन मसऊद गंज शकर ने अजोधन में सुकूनत इख़्तियार करने