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सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
दोहा:
प्रीत गंग नैनां भए पानी भयो शरीर
ज़माना
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
नानक लीन भयो गोविंद सों,
ज्यों पानी संग पानी।।4।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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उदासी संत रैदास जी- श्रीयुत परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल-एल. बी.
तथा, कह रैदास उदास भयो मन,
भाजि कहॉ अब जैये।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
चूक भई कुछ वासे ऐसी। देश छोड़ भयो परदेसी।।
– आदमी
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
चूक भई कुछ वासे ऐसी। देश छोड़ भयो परदेसी।।
-आदमी
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
94 फिर औसर नहि होय
95 अत ही भयो है आनन्द
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
When Acharya Ramchandra Shukla met Surdas ji (भक्त सूरदास जी से आचार्य शुक्ल की भेंट) - डॉ. विश्वनाथ मिश्र
जागिए गुपाल लाल ग्वाल द्वार ठारे।
रैनि अंधकार गयो, चन्द्रमा मलीन भयो।
सम्मेलन पत्रिका
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संत रोहल की बानी- दशरथ राय
ओअहं सोअहं बेकथा, अजपा जाप प्रकास।
अंतर धुन लगी आत्मा, निहचै भयो विसास।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
प्रेम और मध्ययुगीन कृष्ण भक्ति काव्य- दामिनी उत्तम, एम. ए.
मोको तो भावतौ ठौर प्यारे के बैननि में,
प्यारो भयो चाहै मेरे नैननि के वारे।।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
सुफ़ियों का भक्ति राग
कंकर पत्थर जोड़ के मस्जिद लई बनाय
वा चढ़ मुल्ला बांग दे का बहरा भयो खुदाय
ख़ुर्शीद आलम
सूफ़ी लेख
आज रंग है !
लाल भयो बृन्दावन जमना, केसर चुवत अनंग
मीरा के प्रभु गिरधर नागर , चरण कमल बहे गंग.
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हज़रत शाह बर्कतुल्लाह ‘पेमी’ और उनका पेम प्रकाश
‘मन युफ़िल्लहु’ जु हर भयो, भई पाप की मोट
‘फ़लाहादिलहु’ होय नहिं, करो जतन किन कोट.
सुमन मिश्रा
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सूर के माखन-चोर- श्री राजेन्द्रसिंह गौड़, एम. ए.
भोर भयो गैयन के पाछे मधुवन मोहिं पठायो।
चार पहर बंसी बट भटक्यो, साँझ परे घर आयो।।
सम्मेलन पत्रिका
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मीरां के जोगी या जोगिया का मर्म- शंभुसिंह मनोहर
कहा भयो है भगवा पहरयां, घर तज भये सन्यासी।
जोगी होय जुगति नहिं जाणी, उलटि जनम फरि आसी।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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भ्रमर-गीतः गाँव बनाम नगर, डॉक्टर युगेश्वर
कहा भयो जु भए जदुनंदन अब वह पदवी पाई।
सकुचन आवत घोष बसत की तजि ब्रज गये पराई।
सूरदास : विविध संदर्भों में
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महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
को नृप भयो, कंस किन मारगे, को बसुयौ सुत आहि।
यहाँ हमारे परम मनोहर जीजत है मुख चाहि।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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अबुलफजल का वध- श्री चंद्रबली पांडे
सुनतहि वीरसिंह कौ नाउ, फिरि ठाढ़ौ भयो सेख सुभाउ।
परम रोख सौं सेख बखानि, जैसे असुर नृसिहहि जानि।