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सूफ़ी लेख
सुकवि उजियारे - पंडित मयाशंकर याक्षिक
केलि भली विधि सौं अनुसारे। भाँतिनि भाँतिनि के परिरंभ,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
When Acharya Ramchandra Shukla met Surdas ji (भक्त सूरदास जी से आचार्य शुक्ल की भेंट) - डॉ. विश्वनाथ मिश्र
तन पहिरे नूतन चीर, काजर नैन दिए।।ते अपनैं-अपनैं मेल, निकसी भाँति भली।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
आन बान क्यूँ बेचते, पियो पिलाओ आजभक्ति के अभिमान से भली पाप की लाज
ज़माना
सूफ़ी लेख
बेदम शाह वारसी और उनका कलाम
जलालल्लाह का मिक़्ना’ जमालल्लाह का सेहराभली साअ’त से मालिन ने उसे नौशः के बाँधा है
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
ऊधो! भली करी तुम आए। ये बातें कहि कहि या दुख में ब्रज के लोग हँसाए।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूर के माखन-चोर- श्री राजेन्द्रसिंह गौड़, एम. ए.
बड़े बाप की बेटी, पूतहिं भली पढ़ावति बानी।। सखा-भीर लै बैठत घर मैं, आप खाई वौ सहिये।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
जो कुछ है सो तू है मिरा इस्लाम यही हैमुझे बे-ख़ुदी ये तूने भली चाशनी चखाई
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
अबुलफजल का वध- श्री चंद्रबली पांडे
कह्यौ साहि नीकै है राय, जब नीकैं जब देखै पाय। भली करी तै राजकुमार, छोडयौ सब आयौ दरबार।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
जायसी और प्रेमतत्व पंडित परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल्.-एल्. बी.
अर्थात् जिस के हृदय में प्रेम की कसक बैठ गई उसे यदि समझाया बुझाया जाय तो
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूरदास का वात्सल्य-निरूपण, डॉ. जितेन्द्रनाथ पाठक
सूर परम्परा के जीवंत तत्वों से सशक्त रूप में सम्बद्ध थे। न केवल भागवत की विषय
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
मौलाना जलालुद्दीन रूमी
मौलाना रूमी की मसनवी उनके विसाल के एक साल बाद हिंदुस्तान आई। यहाँ भी सूफ़ी संतों
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
जायसी का जीवन-वृत्त- श्री चंद्रबली पांडेय एम. ए., काशी
जायसी के शिक्षा-गुरु हमने यह भली भाँति देख लिय कि जायसी के दीक्षा-गुरु सैयद जहाँघीर अशरफ थे।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
जाहरपीरः गुरु गुग्गा, डा. सत्येन्द्र - Ank-2,1956
इसी स्थल पर पेंन्जर महोदय ने टिप्पणी में बताया है कि मार्खे, समाज तथा रिवाजों में
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत की लिपि तथा रचना-काल- श्रीचंद्रबली पांडेय, एम. ए., काशी
जायसी की ओर ध्यान जाते ही उनसे परिचित होने की कामना हृदय में हलचल मचा देती