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सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
प्रजापाल सुख जाल भयउ भुवपाल सवाई। श्री जयसिंघ दयाल भाल में अति अधिकाई।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
जोग जुक्ति अहि निसी भाल इक चंद प्रकासी।।पाटंबर बनि पोति हदै दरसोइ हुआ छिय।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
औचक ही देखी तहँ राधा, नैन विसाल भाल दिए ररी। सूरश्याम देखत ही रीझे, नैन नैन मिलि परी ठगोरी।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय - श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
सन् 1449 ई. में इसे इमाम शाह नामक मुसलमानी फकीर ने स्थापित किया। ये ईरान के
हिंदुस्तानी पत्रिका
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अभागा दारा शुकोह - श्री अविनाश कुमार श्रीवास्तव
उसके अनंतर शुक्रवार पहली फरवरी 1633 तक किसी प्रकार का भी उत्सव न मनाया गया। हाँ,
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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अभागा दारा शुकोह
उसके अनंतर शुक्रवार पहली फरवरी 1633 तक किसी प्रकार का भी उत्सव न मनाया गया। हाँ,
अविनाश कुमार श्रीवास्तव
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कुतुबनकृत मृगावती के तीन संस्करण- परशुराम चतुर्वेदी
इस संबंध में हमें पता चलता है कि, वाराणसी वाले संस्करण में, यहाँ पर, उपयुक्त पंक्तियों