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सूफ़ी लेख
पीर नसीरुद्दीन ‘नसीर’
अरमानों की इक भीड़ लगी रहती है दिन रातदिल-ए-तंग नहीं, ख़ैर से मेहमान बहुत हैं
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
मय-कशी के फ़न में भी ‘मय-कश’ ना तू कामिल हुआमय-कदे में आके नाहक़ भीड़ मेरे यार की
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तान में क़ौमी यक-जेहती की रिवायात-आ’ली- बिशम्भर नाथ पाण्डेय
मैंने हैरान हो कर पूछा! आख़िर हिंदूओं के मकान जलाने की वजह क्या थी?कल्याण सिंह ने
मुनादी
सूफ़ी लेख
लखनऊ का सफ़रनामा
अब यहाँ से निकल कर हम लोग अंबेडकर मेमोरियल पार्क की तरफ़ बढ़े। ये जगह भी
रय्यान अबुलउलाई
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बाबा फ़रीद शकर गंज
पुलिस थक जाती है लेकिन ज़ाइरीन की आमद का सिल्सिला उसी ज़ोर-ओ-शोर से जारी रहता है।
निज़ाम उल मशायख़
सूफ़ी लेख
औघट शाह वारसी और उनका कलाम
हज़रत औघट शाह वारसी बैअ’त होने के पश्चात बछरायूँ चले आये मगर वहां अपने मुर्शिद से
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हज़रत ग़ौस ग्वालियरी और योग पर उनकी किताब बह्र उल हयात
हुमायूँ की हज़रत में विशेष श्रद्धा होने की वजह से अकबर भी आपका बड़ा सम्मान करता
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
समकालीन खाद्य संकट और ख़ानक़ाही रिवायात
आपकी ख़ानक़ाह से फ़ैज़ का दरिया बहता था।ग़ुरबा,मसाकीन और हाजत-मंदों की एक भीड़ थी जो आपकी
रहबर मिस्बाही
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अभागा दारा शुकोह - श्री अविनाश कुमार श्रीवास्तव
दारा का सिर झुका हुआ था- नेत्र उसके पैरों पर गड़े थे। ऊपर उठकर देखने का
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अभागा दारा शुकोह
दारा का सिर झुका हुआ था- नेत्र उसके पैरों पर गड़े थे। ऊपर उठकर देखने का
अविनाश कुमार श्रीवास्तव
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हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया-अपने पीर-ओ-मुर्शिद की बारगाह में
मज़्कूरा बाला अश्आ’र के बारे में हज़रत अनस बिन मालिक रज़ि-अल्लाहु अ’न्हु की रिवायत है “रसूलुल्लाह
निसार अहमद फ़ारूक़ी
सूफ़ी लेख
महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय - श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
राक्षसों के बंदीगृह से ऋषियों और देवताओं के उद्धार करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र इस संप्रदाय
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय- श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
राक्षसों के बंदीगृह से ऋषियों और देवताओं के उद्धार करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र इस संप्रदाय
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महापुरुष ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी
ये जो आप जगह-जगह दरगाहें देखते हैं जहाँ उ’र्स होते हैं, क़व्वाली होती है, मन्नतें मानी
ख़्वाजा हसन निज़ामी
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
भला इस जुलूस को देखो और पंखे को देखो। बाँस की खिंचियों का बड़ा सा पंखा
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
सूफ़ी लेख
क़व्वाली का माज़ी और मुस्तक़बिल
लेकिन ज़माना एक हाल पर सदा नहीं रहा करता।वक़्त बदला।शराएत को लोगों ने नज़र-अंदाज़ किया।मौसीक़ी की