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सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
भीतर कहौं तो झूठा लो।बाहर भीतर सकल निरंतर,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-ताला(117) भीतर चिलमन बाहर चिलमन, बीच कलेजा धड़के।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-ताला (117) भीतर चिलमन बाहर चिलमन, बीच कलेजा धड़के।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
जायसी और प्रेमतत्व पंडित परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल्.-एल्. बी.
दुख भीतर जो प्रेम-मधु राखा। जग नहिं मरन सहै जो चाखा।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
गुजरात के सूफ़ी कवियों की हिन्दी-कविता - अम्बाशंकर नागर
नहीं पडता उन्हू कू कछी मुश्किल।।खुदा के इश्क भीतर वे शबोरोज।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
हिन्दी साहित्य में लोकतत्व की परंपरा और कबीर- डा. सत्येन्द्र
हँस न बौलै उनमनीं, चंचल मेल्ह्या मारि, कहैं कबीर भीतर भिद्या, सतगुरु कै हथियारि।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूर के माखन-चोर- श्री राजेन्द्रसिंह गौड़, एम. ए.
गए स्याम तिहिं ग्वालिन के घर। देख्यौ द्वार नहीं कोउ, इत-उत चितै, चले तब भीतर।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीर के कुछ अप्रकाशित पद ओमप्रकाश सक्सेना
बीता नाक मां त्रीभोवन सूझे, सदगुरु अलख लखाया। जब कारण जोगी बाहर ढूंढत है, ते घट भीतर पाया।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अबुलफजल का वध- श्री चंद्रबली पांडे
भीतर गौ दिल्ली कौ नाथ, बहुर्यो खा सरीफ गहि हाथ। जब जब जाइ कुँवर दरबार, लै बहुरै अहिलाद अपार।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
अब यहाँ पर थोड़ा इसका भी निर्णय हो जाना चाहिए कि इन बाल-चेष्टाओं का काव्य-विधान में