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सूफ़ी लेख
अलाउल और उनकी पद्मावती-सत्येन्द्रनाथ घोषाल, शान्तिनिकेतन - Ank-1, 1956
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
आचार्य चन्द्रबली पांडे एवं उनका तसव्वुफ अथवा सूफ़ीमत डॉ. इन्द्र पाल सिंह
सूफीमत पर लिखा गया पांडे जी का यह ग्रंथ अपने विषय पर आप्त और प्रमाणिक है।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीर द्वारा प्रयुक्त कुछ गूढ़ तथा अप्रचलित शब्द पारसनाथ तिवारी
पद 109-1, मैं सासुरे पिय गौंहनि आई। गौंहनि अर्थात् पास, निकट, साथ। तुल. देवज् गोहन लागे
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
चतुर्भुजदास की मधुमालती- श्री माताप्रसाद गुप्त
‘गुलशन-ए-इश्क़’ से कुछ अंश अपने प्रसिद्ध ‘शहपारा’ में देते हुए श्री कादरी ने उक्त अंश की
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत के कुछ विशेष स्थल- श्री वासुदेवशरण
पक्के=रस में परिपक।(3) रहे न आठ अठारह भाखा। (1) जब आठ वर्ष की आयु (बालपन) नहीं
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अभागा दारा शुकोह - श्री अविनाश कुमार श्रीवास्तव
4- मजमआ-उल बहरैन्- यह पुस्तक 1650 और 1656 के बीच कभी लिखी गई थी। इसमें इस्लाम
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सन्यासी फ़क़ीर आंदोलन – भारत का पहला स्वाधीनता संग्राम
बंगाल और बिहार में फैले इस विद्रोह के नेता मजनू शाह मलंग , मूसा शाह, चिराग़
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
अभागा दारा शुकोह
4- मजमआ-उल बहरैन्- यह पुस्तक 1650 और 1656 के बीच कभी लिखी गई थी। इसमें इस्लाम
अविनाश कुमार श्रीवास्तव
सूफ़ी लेख
बीसलदेव रासो- शालिग्राम उपाध्याय
यद्यपि 36 वर्ष पहले वाली प्रति के समान अधिक प्रतियाँ खंडों में अविभाजित ही मिलती हैं
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
Indian Sufism
बंगाल के सुल्तान हुसैन (१४९३ -१५१९) और उसके पुत्र नुसरत शाह ने बंगाली वैष्णव साहित्य को
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
उमर खैयाम की रुबाइयाँ (समीक्षा)- श्री रघुवंशलाल गुप्त आइ. सी. एस.
गुप्तजी के अनुवाद के कुछ पीछे श्री केशवप्रसाद पाठक का अनुवाद, रुबाइयात् के पहले संस्करण से
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
मुसलमान शासकों का संस्कृत प्रेम- श्री हरिप्रताप सिंह
मुसलमान शासकों ने संस्कृत भाषा में बद्ध भावों को समझने तथा उन्हें अनुवाद रूप में लाने
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
गुजरात के सूफ़ी कवियों की हिन्दी-कविता - अम्बाशंकर नागर
इस अवलोकन से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि गुजरता के सूफ़ी शायरों ने ‘हिन्दवी
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूरदास का वात्सल्य-निरूपण, डॉ. जितेन्द्रनाथ पाठक
सूर की प्रतिभा का प्रवाह देखने का प्रकृत क्षेत्र उनका भावपक्ष है जिसमें सूर की मौलिकता