आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "मिलन"
सूफ़ी लेख के संबंधित परिणाम "मिलन"
सूफ़ी लेख
सूफ़ी काव्य में भाव ध्वनि- डॉ. रामकुमारी मिश्र
बाजै तीनो लोक बचावा -मधुमालती, 69.2
............. मिलन औचि सुनि जिउ गहवरा,
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
करौं चौंर चढ़ाय आसन नैन अँग अँग लाय।।
देहु दरसन, नंदनंदन! मिलन ही की आस।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
पानी का सा बुलबुला, यह तन ऐसा होय।
पीव मिलन की ठानिए, रहिए ना पड़ि सोय।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
औघट शाह वारसी और उनका कलाम
‘औघट’ गुरु दया करें तो पल में निर्गुण होई
कान खोल ‘औघट’ सुनो पिया मिलन की लाग
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
प्रेम मगन लवलीन मन, तहाँ मिलन की आस।।
त्रिखा बिना तन प्रीसि न उपजइ, सीत निकट जब घरिया।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
प्रिय मिलन की आस हो तो गवाऊँ रोय
13۔ ज़े-बुत न गोश:-ए-चश्मे न चीं-अबरूवे
ज़माना
सूफ़ी लेख
संत साहित्य
प्रेम मगन लवलीन मन, तहाँ मिलन की आस।।
त्रिखा बिना तन प्रीसि न उपजइ, सीत निकट जब घरिया।
परशुराम चतुर्वेदी
सूफ़ी लेख
सूफ़ी ‘तुराब’ के कान्ह कुँवर (अमृतरस की समीक्षा)
अनेक बार कृष्ण को परब्रह्म के प्रतीक के रूप में भी देखा जा सकता है ।