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सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ फ़ख़्रुद्दीन इ’राक़ी रहमतुल्लाह अ’लैह
ब-रह-ए-यार मुंतज़िर मांदःनमक-ए-शौक़ बर दिल अफ़्शांदः
सूफ़ीनामा आर्काइव
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हकीम सफ़दर अ’ली सफ़ा वारसी
बनाया है मकाँ कहते जिसे मंज़िल है वारिस काबिछा फ़र्श-ए-मुसफ़्फ़ा मुंतज़िर तारीख़-ए-पहली का
जुनैद अहमद नूर
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चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
सूफ़ी लेख
तज़्किरा-ए-फ़ख़्र-ए-जहाँ देहलवी
नमाज़-ए-सुबह की तकबीर हो रही थी। अल्हम्दुलिल्लाही वल-मिन्ना।नमाज़ में शरीक हो गया। उस दिन के बा’द
निसार अहमद फ़ारूक़ी
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ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी
काक एक क़िस्म की छोटी सी गोल रोटी बिस्कुट की तरह होती है जिसके किनारे उभरे
ख़्वाजा हसन सानी
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा साहब पर क्या कहती हैं पुरानी किताबें?
हिंदुस्तान में तसव्वुफ़ का चराग़ आप ही से रौशन हुआ। क्या अमीर क्या ग़रीब, क्या हिंदू
रय्यान अबुलउलाई
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समाअ’ और आदाब-ए-समाअ’- मुल्ला वाहिदी देहलवी
दूसरा ख़याल वक़्त का होना चाहिए।मसलन नमाज़ के वक़्त समाअ’ का क्या काम।तीसरा ख़याल मकान का
मुनादी
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हज़रत शरफ़ुद्दीन अहमद मनेरी रहमतुल्लाह अ’लैह
सुनार गाँव के क़ियाम की मुद्दत में हज़रत मख़दूमुल-मुल्क, घर के ख़ुतूत नहीं खोला करते थे
सूफ़ीनामा आर्काइव
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हज़रत शैख़ अबुल हसन अ’ली हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैहि
मगर हज़रत शैख़ हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैह के नज़दीक बंदा का ग़नी होना मुहाल भी नहीं।अल-ग़नीयु मन
सूफ़ीनामा आर्काइव
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हज़रत ख़्वाजा गेसू दराज़ चिश्ती अक़दार-ए-हयात के तर्जुमान-डॉक्टर सय्यद नक़ी हुसैन जा’फ़री
मुनादी
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बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
बादशाह ने फ़रमाया वाह जी वाह ख़ाली झूला कैसा। कढ़ाई चढ़ाओ, झूलते जाओ और खाते जाओ