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सूफ़ी लेख
समर्थ गुरु रामदास- लक्ष्मीधर वाजपेयी
कीं हे अमृताचे मेघ बोकले। कीं हे नवरसाचे बोध लोटले।
माधुरी पत्रिका
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सूर के भ्रमर-गीत की दार्शनिक पृष्ठभूमि, डॉक्टर आदर्श सक्सेना
अपने तौ पठवत नहिं मोहन, हमरे फिरि न फिरे।कागद गरे मेघ मसि खूटी, सर दब लागि जरे।
सूरदास : विविध संदर्भों में
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रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
मेघ से गुरु की समदर्शिता की उपमा निम्न पंक्तियों में दी गई है- सहजो गुरु ऐसा मिलै, मेटै मन संदेह।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
प्रिय के साथ कुछ रूप-साम्य के कारण वे ही मेघ कभी प्रिय लगने लगते हैं---- आजु घन श्याम की अनुहारि।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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मिस्टिक लिपिस्टिक और मीरा
प्रकृति भी इसी रंग में रंग गई। “उमंग्यो इन्द्र चहं दिसि बरसे दामिनि छोड़ी लाज। धरती
सूफ़ीनामा आर्काइव
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कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
माया की दो शक्तियाँ स्वीकार की गई, प्रथम आवरण एवं दूसरी विक्षेप- इनके परिणामस्वरूप जगत् का
हिंदुस्तानी पत्रिका
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कन्नड़ का भक्ति साहित्य- श्री रङ्गनाथ दिवाकर
आदि-मानव ने इस विचित्र एवं विविधता से भरी सृष्टि की ओर आँखें खोल के पहले-पहल जब