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सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
यथा योग्य जाहिर रहें।। ग्रंथ कठिनता जाँन
भारतीय साहित्य पत्रिका
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गीता और तसव्वुफ़ - मुंशी मंज़ूरुल-हक़ कलीम
यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता।योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः।।
ज़माना
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महाकवि माघ और उनका काव्य सौन्दर्य- श्री रामप्रताप त्रिपाठी, शास्त्री
स्थायिनोअर्थे प्रवर्तन्ते भावाः सञ्चारिणो यथा। रसस्यैकस्य भूयांसस्तथा नेतुर्महीभुतः।। सर्ग 2।87।।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
तेऊ धरिए ग्रंथ की ज्यों सोभा सरसाथ।।27।। अथ अलंकारप्रसंसा कविप्रियायां यथा
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
कबीरपंथ के समान दरियापंथ ने भी काम-विषयक का वर्णन हुआ है, यथा, कृष्ण, नारद, श्रृंगी ऋषि आदि।क्रोध-
हिंदुस्तानी पत्रिका
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मीरां के जोगी या जोगिया का मर्म- शंभुसिंह मनोहर
तथापि, प्रासंगिक रूप से अपने मत की पुष्टि में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि केवल
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
रामावत संप्रदाय- बाबू श्यामसुंदर दास, काशी
आज हम मध्य काल के हिंदी साहित्य का एक अंक उपस्थित करते हैं। इन तीन सौ
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अलाउल की पदमावती- वासुदेव शरण अग्रवाल- Ank-1, 1956
विवाह से पूर्व लगभग तीस पंक्तियों में पदमावती का रूप वर्णन कवि की स्वतंत्र किन्तु उत्कृष्ट
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
Fawaid-ul-Fawaad (Morals For The Heart) – Book review
दूसरे प्रकार के माल्फ़ूज़ात वह हैं जो सूफ़ी मजलिसों में उपदेश दिये जाने के कुछ समय
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
क़व्वालों के क़िस्से
उनके बेटे ने अपने पिता द्वारा स्थापित इस परंपरा को आगे ज़ारी रखा और आज इक़बाल
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
कबीर द्वारा प्रयुक्त कुछ गूढ़ तथा अप्रचलित शब्द पारसनाथ तिवारी
पद 65-1, मन रे अहरखि बाद न कीजै। अपनां सुक्रितु भरि भारे लीजै।। जिन प्रतियों में