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सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
वो नूर के गले, वो रसीली आवाज़ें, वो सच्ची तानें, वो वक़्त की रागनी ,वो सुहाना
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
सूफ़ी लेख
क़व्वाली के अव्वलीन सरपरस्त हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया
सिलसिला-ए-चिश्त की इस सारी तफ़्सील से ये बात खुल कर सामने आ जाती है कि क़व्वाली
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
क़व्वाली में बाज़ाबता राग हैं
समा’अ में महज़ ख़ुश-अल्हानी की इजाज़त है और क़व्वाली राग रागनियों पर मुश्तमिल है, मसलन क़व्वाली
अकमल हैदराबादी
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क़व्वाली
क़व्वाली एक फ़न है या’नी एक सिंफ़-ए- मौसीक़ी जिसमें चंद ख़ुश-गुलू मुश्तरका तौर पर बा-ज़ाबता राग