आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "ला"
सूफ़ी लेख के संबंधित परिणाम "ला"
सूफ़ी लेख
अज़ीज़ सफ़ीपुरी और उनकी उर्दू शा’इरी
मकाँ है एक त’अय्युन ला-मकाँ भी इक त’अय्युन हैवही मौजूद है बे-शक मकान-ओ-ला-मकाँ कैसा
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
सूफ़ी लेख
हज़रत शाह नियाज़ बरेलवी की शाइरी में इरफान-ए-हक़
अगर दानी कि हर शय हस्त ला-शयब-दाँ कि हर मकाँ हम ला-मकाँ अस्त
अहमद फ़ाख़िर
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(3)ऐ सरवंता मबा- मोरा ला- सब बना।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
हिम्मत न-ख़ूरद नेश्तर ला-ओ-नअ’म रातर्जुमा:
ज़माना
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(3)(287)ऐ सरवंता मबा- मोरा ला- सब बना।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया-अपने पीर-ओ-मुर्शिद की बारगाह में
फ़ला तबी-ब लहा व-ला राक़िनइल्लल हबीबल-लज़ी शग़फ़त बिहि
निसार अहमद फ़ारूक़ी
सूफ़ी लेख
बेदम शाह वारसी और उनका कलाम
जुज़ दुर्द-ए-कशान-ए-ला-उबाली‘जामी’ ब-वज़ाइफ़-ए-तज़र्रो’
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हज़रत मुल्ला बदख़्शी- पंडित जवाहर नाथ साक़ी देहलवी
शक नीस्त दरीं कि आ’रिफ़ बिल्लाह अस्तदर्दश हमः ला-ईलाहा इल्लाह अस्त
निज़ाम उल मशायख़
सूफ़ी लेख
दूल्हा और दुल्हन का आरिफ़ाना तसव्वुर
बुल्हा शाह दी धूम मची है ला-इलाहा इल्लल्लाहहोरी खेलूंगी कह बिस्मिल्लाह
शमीम तारिक़
सूफ़ी लेख
"है शहर-ए-बनारस की फ़ज़ा कितनी मुकर्रम"
अज़ साल-ए-विलादतश अगर मी-तलबीला-रैब ख़लीफ़ा-ए-रसूलुल्लाह अस्त
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
क़व्वाली और अमीर ख़ुसरो – अहमद हुसैन ख़ान
अल्ला-हुम्मा ला-ख़ै-र इल्ला ख़ैरल-आख़िरहफ़ग़्फ़िरिल-अन्सा-र वल-मुहाजिरह
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
फ़िरदौसी - सय्यद रज़ा क़ासिमी हुसैनाबादी
हर-चंद कि ला-अंबिया-अ बा’दीअदबियात-ओ-क़सीदः-ओ-ग़ज़ल रा
ज़माना
सूफ़ी लेख
सुफ़ियों का भक्ति राग
ला इलाह का ताना इल्लल्लाह का बानादास कबीर बटने को बैठा उलझा सूत पुराना
ख़ुर्शीद आलम
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
इ’श्क़ कू बे-बाल-ओ-पर तैराँ कुनदइ’श्क़ कू दर ला-मकाँ जौलाँ कुनद
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी क़व्वाली के विभिन्न प्रकार
यला ली यलाली यलाली-यलाली या ला लीमन कुंतो मौला फ़-हाज़ा अ’लीयुन मौला
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तान में क़ौमी यक-जेहती की रिवायात-आ’ली- बिशम्भर नाथ पाण्डेय
“ला-इकराहा फ़िद्दीन’’ मज़हब के मुआ’मले में कोई ज़बरदस्ती नहीं”किसी सूफ़ी ने कहा है:
मुनादी
सूफ़ी लेख
शाह तुराब अली क़लंदर और उनका काव्य
मुनज़्ज़ह वो तो हे कौन-ओ-मकाँ सेमकाँ उस को कहाँ जो ला-मकाँ हो
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
ख़ानक़ाह मनेर शरीफ़
मरकज़ ए इर्शाद-ए-हक़ ला रै-ब फ़ीहख़ानक़ाह-ए-हज़रत-ए-ताज-ए-फ़क़ीह
शाह तारिक़ फ़िरदौसी
सूफ़ी लेख
क़व्वालों के क़िस्से
कब्र है तेरी मंज़िल और ये बराती हैंला के कब्र में तुझको उरदा पाक डालेंगे