आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "सकल"
सूफ़ी लेख के संबंधित परिणाम "सकल"
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
।। छप्पै ।।एक रदन गजबदन सकल तत्वारथभ्यासी।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुमाणरासो का रचनाकाल और रचियता- श्री अगरचंद नाहटा
दूहा शिव सुत सुंडालो सवल, सेवे सकल सुरेश।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
भीतर कहौं तो झूठा लो।बाहर भीतर सकल निरंतर,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत में अर्थ की दृष्टि से विचारणीय कुछ स्थल - डॉ. माता प्रसाद गुप्त
(55) 128.2 जाँवत अहै सकल ओरगाना। साँबर लेहु दूरि है जाना।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
नाम तुम्हारो आरत भंजन मुरारे। हरि के नाम बिन झूठे सकल पसारे।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
फ़ारसी लिपि में हिंदी पुस्तकें- श्रीयुत भगवतदयाल वर्मा, एम. ए.
बरनो नायक नायिका, कियो ग्रंथ विस्तार।।सुंदर कृत सिंगार है, सकल रसन की सार।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
संगति साधुं संतनाम की, सरन उबरिये भाग।। क्रोध अग्नि घट घट बरी, जरत सकल संसार।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीर साहब और विभिन्न धार्मिक मत- श्री परशुराम चतुर्वेदी
पापी पूजा बैसि करि, भषैं मांस मद दोइ।सकल बरण इकत्र ह्वै, सकति पूजि मिलि खांहि।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत कबीर की सगुण भक्ति का स्वरूप- गोवर्धननाथ शुक्ल
सकल दृस्य निज उदर मेलि सोवै निद्रा तजि जोगी।सोई हरिपद अनुभवै परम सुख अतिसय द्वैत वियोगी।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीर के कुछ अप्रकाशित पद ओमप्रकाश सक्सेना
नाद घंटा सुनत आधा, मुषे तरन न चरे। सकल बन में भमत भरा, सो बास कमल की करे।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कविवर रहीम-संबंधी कतिपय किवदंतियाँ - याज्ञिकत्रय
छबि रहीम चित तें न टरति है, सकल श्याम की बानि।जिहि रहीम तन मन दियो, कियो हिये बिच भौन।
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
श्रीफल कनक कदलि हरपाहीं। नेकु न सक सकुच मन माहीं। सुनु जानकी! तोहि बिनु आजू। हरषे सकल पाइ जनु राजू।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कविवर रहीम-संबंधी कतिपय किंवदंतियाँ- याज्ञिकत्रय
छबि रहीम चित तें न टरति है, सकल श्याम की बानि। जिहि रहीम तन मन दियो, कियो हिये बिच भौन।
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अबुलफजल का वध- श्री चंद्रबली पांडे
देव सु बड़ गूजर सुत भले, चपतिराइ सीस लै चले। सीस साहि के आगै धरयौ, देखत साहि सकल सुख भरयौ।