आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "सदा"
सूफ़ी लेख के संबंधित परिणाम "सदा"
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
सदा रखिए लाल गुलाल हज़रत....(2)
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
मै तैं डारै खोई।तेहि काँ राम सदा सुखदायक,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय - श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
मना! अल्प संकलप् तोही नसावा। सदा सत्यसंकल्प चित्तीं बसावा।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
फ़ारसी लिपि में हिंदी पुस्तकें- श्रीयुत भगवतदयाल वर्मा, एम. ए.
जम जम जीयो आतिश ख़ाँ सदा मस्त हती।।चैत
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय- श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
मना! अल्प संकलप् तोही नसावा। सदा सत्यसंकल्प चित्तीं बसावा।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
मीरां के जोगी या जोगिया का मर्म- शंभुसिंह मनोहर
सदा उनमद्द जोगाणंद सिद्ध,वयं तन बाल न जोवन व्रद्ध।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
कृष्ण करे जिहिं ध्यान हैं अधीन जिनके सदा।। इति मूलं
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
भनि नागर अटल सुरेश ज्यों रहौ सदा सिर छत्र धरि।।34।।।। दोहा ।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
मद के भिखारी मीन मास के अहारी रहें, सदा अनाचारी चारी लिखते लिखावते।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुमाणरासो का रचनाकाल और रचियता- श्री अगरचंद नाहटा
वसे सदा वागेश्वरी, विध विध करे विलास।।3।। विद्या बुद्धि विवेक वर, वायक दायकवित्त।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
दोय सदा लागी रहै चौरासी के फेर। चरनदास यों कहत हैं सहजो आया हेर।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
उदासी संत रैदास जी- श्रीयुत परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल-एल. बी.
अगम अगोचर अच्छर अतरक, निरगुन अंत अनंदा।। सदा अतीत ज्ञानघट वर्जित, निरविकार अविनासी।। इत्यादि।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी क़व्वाली के विभिन्न प्रकार
अ’ता हो सदक़ा ऐ ख़्वाजा पिया ग़रीबों कोसदा एँ माँगने वाले लगाए जाते हैं
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता- शाल़ग्राम श्रीवास्तव
रहीम ने ठीक इसी को इस प्रकार कहा है-----सदा नगारा कूच का, बाजत आठों जाम।