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सूफ़ी लेख
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
फ़सानः इस्त मुतव्वल ततावुल-ए-ज़ुल्फ़्तसमाअ’-ए-मुख़्तसर ज़ाँ समर दरेग़ म-दार
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
खंजन मनरंजन जन जौ पै, कबहुँ नाहिं सतरात। पंख पसारि न उड़त, मंद ह्वै समर समीप बिकाते।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
बस करि असाम किरवान लहि पान न्हान सागर कियौ। भनि मनीराम सतसठि समर जिन जित्तै सम को वियौ।।7।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी तहज़ीब की तश्कील में अमीर ख़ुसरो का हिस्सा - मुनाज़िर आ’शिक़ हरगानवी
फ़रोग़-ए-उर्दू
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अस्मारुल-असरार - डॉक्टर तनवीर अहमद अ’ल्वी
इस किताब में रुमूज़-ए-हक़ाएक़ की तशरीह-ओ-ता’बीर में क़ुरआन-ओ-हदीस से जो रुजूअ’ किया जाता रहा है उस
सूफ़ीनामा आर्काइव
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पदमावत में अर्थ की दृष्टि से विचारणीय कुछ स्थल - डॉ. माता प्रसाद गुप्त
तेरि अरघानि भँवर सब लुबुधे तजहिं न नीबी वध।।पहली पंक्ति का अर्थ डॉ. अग्रवाल ने किया