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सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
काहे रे धन खोजन जाई।।टेक।।सर्व निवासी सदा अर्लपा,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
शैख़ गुफ़्त ऐ सर्व क़द्द-ए-सीमबर ।अ’हद-ए- नेको मी बरी अलहक़ बसर ।।
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
8۔ गाहे ब-याद-ए-सर्व-क़दे गिर्यः हम ख़ुशस्तता के ज़े-शौक़-ए-सिद्रः-ओ-तूबा गिरीस्तन
ज़माना
सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान
कहता है दिखला के अपना क़द्द-ए-मौज़ूँ नाज़ सेसर्व-ए-गुलशन भी हमारे कफ़्श -बरदारों में है
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
पढ़ै सुनै साधु जन कोई। सर्व अंग कूं जानै सोई।।बिचार चरित्र को करै बिचारा। भवसागर सौं होवे पारा।।9।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
अभिमान विशेष रूप से कष्टदायक सिद्ध होता है। अभिमानी व्यक्ति इस संसार में ऐंठकर चलता है,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कविवर रहीम-संबंधी कतिपय किवदंतियाँ - याज्ञिकत्रय
(4)एक सिद्ध मुख में गोली ले आकास (मार्ग से) जाते हुते। सो (सिद्ध) ख़ानख़ाना के बाग़
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कविवर रहीम-संबंधी कतिपय किंवदंतियाँ- याज्ञिकत्रय
(4)एक सिद्ध मुख में गोली ले आकास (मार्ग से) जाते हुते। सो (सिद्ध) ख़ानख़ाना के बाग़
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
निर्गुण कविता की समाप्ति के कारण, श्री प्रभाकर माचवे - Ank-1, 1956
करतल के आँवले की तरह से हमने तुझे ज्ञान दिखाया। बहमनी काल में संतसाहित्य क्यों पिछड़ा
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
अलंकार, संगीत और ध्वनि का इन्हें इतना सूक्ष्म ज्ञान था कि श्रुतियों तक का विशद् विवेचन
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
देव और बिहारी विषयक विवादः उपलब्धियाँ- किशोरी लाल
‘देव बिहारी’ के पश्चात लाला भगवानदीन ने मिश्रबंधुओं के देव विषयक अनुचित पक्षपात और पं. कृष्ण
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत की लिपि तथा रचना-काल- श्रीचंद्रबली पांडेय, एम. ए., काशी
पदमावत के रचना-काल के विषय में हमको जो कुछ निवेदन करना था, उसकी इति हो चुकी।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
उमर ख़ैयाम श्रीयुत इक़बाल वर्मा, सेहर
ख़ैयाम में एक खूबी और भी है जो उस की रुबाइयों में प्रायः सर्वत्र देखी जाती