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सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी क़व्वाली के विभिन्न प्रकार
तू सलामत रहे जारी तिरा फ़ैज़ान रहेदीद वालों को हो दीदार मुबारक बाशद
सुमन मिश्रा
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हज़रत शैख़ अबुल हसन अ’ली हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैहि
(11) इसके बा’द हज़रत शैख़ हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैह ने जम्अ’ की दो क़िस्में बताई हैं 1.
सूफ़ीनामा आर्काइव
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बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
बादशाह सलामत के झरना पहुँचते ही क़लमाक़नियों ने शाही पिंगोरा खड़ा कर उस में मस्नद बिछा
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
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याद रखना फ़साना हैं ये लोग - डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन ख़ाँ
बहादुर शाह के ज़िक्र में राशिदुल-ख़ैरी ने उस तक़रीब का समाँ इन अल्फ़ाज़ में बाँधा है।“उधर
मुनादी
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तज़्किरा-ए-फ़ख़्र-ए-जहाँ देहलवी
मुसन्निफ़ के साथ ही दो और शख़्सियतें भी हमारी ता’रीफ़-ओ-तहसीन और एहसानमंदी का हक़ रखती हैं।
निसार अहमद फ़ारूक़ी
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मसनवी की कहानियाँ -1
शेर ने कहा ”मैं मुनासिब मौक़ा’ पर करम भी करता हूँ और जो शख़्स जिस जामे
ज़माना
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Malangs of India
दीवानगान सिलसिला कभी हिंदुस्तान के सबसे अमीर सिलसिलों में शुमार होता था. इस सिलसिले के पास
सुमन मिश्रा
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हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
लेकिन इस ज़ुहद-ओ-इ’बादत और सलामत-रवी के बावजूद वो एक मुसलमान हुक्मराँ के फ़राएज़ से ग़ाफ़िल नहीं
सूफ़ीनामा आर्काइव
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ग्रामोफ़ोन क़व्वाली
1992 में उन की तबीअ’त ख़राब हुई और इसी साल 8 अक्टूबर को अ’ज़ीज़ नाज़ाँ इस
सुमन मिश्रा
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बिहार में क़व्वालों का इतिहास
ये आम तौर पर देखा गया है कि क़व्वाल की जब तक आवाज़ सलामत है, उस
रय्यान अबुलउलाई
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हज़रत शैख़ अब्दुल-हक़ मुहद्दिस देहलवी
" वो छ: किताबें जो इस्लाम में मुक़र्रर –ओ- मशहूर हैं जिनको सिहाह-ए-सित्ता कहते हैं, उनके
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
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पैकर-ए-सब्र-ओ-रज़ा “सय्यद शाह मोहम्मद यूसुफ़ बल्ख़ी फ़िरदौसी”
आपका इंतिक़ाल 1 रजब 1394 हिज्री मुवाफ़िक़ 22 जुलाई 1974 ई’स्वी को दानापुर में हुआ। नमाज़-ए-जनाज़ा
अब्सार बल्ख़ी
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क़व्वालों के क़िस्से
अज़ीज़ नाज़ाँ की क़व्वाली शुरुआ’त में इस्माईल आज़ाद की शैली का अनुकरण करती मा’लूम पड़ती है