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सूफ़ी लेख
हज़रत शाह-ए-दौला साहब-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
शाह सय्यदा साहब:जिस ज़माना का हम ज़िक्र करते हैं ये वो ज़माना है जब कि ग्यारहवीं
सूफ़ी
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महफ़िल-ए-समाअ’ और सिलसिला-ए-वारसिया
अ’रबी ज़बान का एक लफ़्ज़ ‘क़ौल’ है जिसके मा’नी हैं बयान, गुफ़्तुगू और बात कहना वग़ैरा।आ’म
डॉ. कबीर वारसी
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सूफ़िया-ए-किराम और ख़िदमात-ए-उर्दू - सय्यद मुहीउद्दीन नदवी
आज दुनिया बजा तौर पर उन मुबारक हस्तीयों पा नाज़ कर सकती है जिन्हों ने इ’मादुद्दीन
सूफ़ीनामा आर्काइव
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बक़ा-ए-इंसानियत के सिलसिला में सूफ़िया का तरीक़ा-ए-कार- मौलाना जलालुद्दीन अ’ब्दुल मतीन फ़िरंगी महल्ली
बात की इब्तिदा तो अल्लाह या ईश्वर के नाम ही से है जो निहायत मेहरबान और
मुनादी
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आस्ताना-ए-ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ में ख़ुद्दाम साहिब-ज़ादगान, सय्यिद-ज़ादगान औलाद-ए-हज़रत ख़्वाजा सय्यिद फ़ख़्रुद्दीन गर्देज़ी
आतिफ़ काज़मी
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हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
सूफ़ीनामा आर्काइव
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हज़रत शैख़ अ’लाउ’द्दीन क़ुरैशी-ग्वालियर में नवीं सदी हिज्री के शैख़-ए-तरीक़त और सिल्सिला-ए-चिश्तिया के बानी - सरदार रज़ा मुहम्मद
सूफ़ीनामा आर्काइव
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तसव़्वुफ-ए-इस्लाम - मैकश अकबराबादी
तसव्वुफ़ कुछ इस्लाम के साथ मख़्सूस और उसकी तन्हा ख़ुसूसियत नहीं है।अलबत्ता इस्लामी तसव्वुफ़ में ये
मयकश अकबराबादी
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ये मय-परस्तों का मय-कदा है ये ख़ानकाह-ए-अबुल-उ’ला हैकोई क़दह-नोश झूमता है तो कोई बे-ख़ुद पड़ा हुआ है
रय्यान अबुलउलाई
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : ख़्वाजा अमजद हुसैन नक़्शबंदी
हिन्दुस्तान में ख़ानक़ाहें और बारगाहें कसरत से वजूद में आईं जहाँ शब ओ रोज़ बंदगान ए
रय्यान अबुलउलाई
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ज़िक्र-ए-खैर : हज़रत शाह अय्यूब अब्दाली
बिहार की सर-ज़मीन हमेशा से मर्दुम-ख़ेज़ रही है। न जाने कितने इल्म ओ अदब और फ़क़्र
रय्यान अबुलउलाई
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह अकबर दानापुरी
सूबा-ए-बिहार अपनी अज़मत के लिहाज़ से दीगर जगहों पर फ़ौक़ियत रखता है। इस्लाम की आमद के