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सूफ़ी लेख
शैख़ सा’दी का तख़ल्लुस किस सा’द के नाम पर है ?
मर उस्ताद रा गुफ़्तम ऐ पुर ख़िरदफ़ुलाँ यार बर मन हसद मी-बुरद
एजाज़ हुसैन ख़ान
सूफ़ी लेख
हाजी वारिस अ’ली शाह का पैग़ाम-ए-इन्सानियत - डॉक्टर सफ़ी अहमद काकोरवी
उन्नीसवीं सदी का दौर है। अवध की फ़िज़ा ऐ’श-ओ-इ’श्रत से मा’मूर है। फ़ौजी क़ुव्वतें और मुल्की
मुनादी
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बक़ा-ए-इन्सानियत में सूफ़ियों का हिस्सा (हज़रत शाह तुराब अ’ली क़लंदर काकोरवी के हवाला से) - डॉक्टर मसऊ’द अनवर अ’लवी
मुनादी
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हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी
देहली में आमदः आप जब दिल्ली तशरीफ़ लाए तो सुल्तान शम्सुद्दीन अल्तमिश ने आपका इस्तिक़बाल किया।
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
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तज़्किरा हज़रत शाह तेग़ अली
कमाल–ए-शरीअ’त का नाम तरीक़त है। सबसे पहले जो गुनाह वुजूद में आया वो हसद है। सब्र–ओ-शुक्र
डॉ. शमीम मुनएमी
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह अमीन अहमद फ़िरदौसी
फ़ारसी ज़बान से आपको तिब्बी मुनासिबत थी ख़ुद फ़रमाते हैं कि दीवान-ए-हाफ़िज़ की चँद ग़ज़लें पढ़ी
रय्यान अबुलउलाई
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शम्स तबरेज़ी - ज़ियाउद्दीन अहमद ख़ां बर्नी
और फिर फ़रमाया कि इन बातों की कुछ ज़रूरत नहीं।सिर्फ़ मौलाना का ख़त काफ़ी है।शम्स ने