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सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
दोहा:तुर्की, अ’रबी, फ़ारसी, हिन्दी जैती आह
ज़माना
सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
उपर्युक्त पंक्तियों से स्पष्ट है कि हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में वृन्द के वंशजों
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
क़व्वाली में उर्दू हिन्दी की इब्तिदा
फ़ार्सी-दाँ हल्क़ों में क़व्वाली की मक़्बूलियत के बाद मूजिद-ए-क़व्वाली हज़रत अमीर ख़ुसरौ को एक ऐसा अहम
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
हिन्दी साहित्य में लोकतत्व की परंपरा और कबीर- डा. सत्येन्द्र
हिन्दी पहले लोक भाषा थी। लोकभाषा ही शनैः शनैः साहित्यिक भाषा का रूप ग्रहण करती है।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
दक्खिनी हिन्दी के सूरदास-सैयद मीरां हाशमी- डॉ. रहमतउल्लाह
दक्खिनी हिन्दी का यह सूरदास एक प्रतिभासम्पन्न कवि था। और इसने दीर्घकालीन जीवन व्यतीत किया था।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी तहज़ीब की तश्कील में अमीर ख़ुसरो का हिस्सा - मुनाज़िर आ’शिक़ हरगानवी
ख़ुरासानी कि हिन्दी गीरदश गूल।ख़से बाशद ब-नज़्दश बर्ग–ए-तंबूल।।
फ़रोग़-ए-उर्दू
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो - तहज़ीबी हम-आहंगी की अ’लामत - डॉक्टर अनवारुल हसन
कि बर-जुमलः ज़बाँहा काफ़िराँ अस्त ।।ज़बान–ए-हिन्दी हम ताज़ी मिसालस्त।
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
अलाउल की पदमावती- वासुदेव शरण अग्रवाल- Ank-1, 1956
मेरा विचार था कि उसे हिन्दी विधापीठ की साहित्य-पत्रिका के अंको द्वारा मुद्रित करा दूँगा। सौभाग्य
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
अलाउल की पद्मावती - वासुदेव शरण अग्रवाल
इधर श्री सत्येन्द्र जी कलकत्ता विश्वविद्यालय में काम कर रहे थे। मैने उनसे अपनी इच्छा प्रकट
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीर द्वारा प्रयुक्त कुछ गूढ़ तथा अप्रचलित शब्द पारसनाथ तिवारी
मध्यकाल के प्रायः सभी प्रमुख हिन्दी-कवियों ने ऐसे अनेक सभ्द अपनी रचनाओं में प्रयुक्त किये हैं
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूफ़ी ‘तुराब’ के कान्ह कुँवर (अमृतरस की समीक्षा)
तुराब शाह जैसे सन्त कवि जो मुस्लिम समाज से सम्बद्ध होकर समाज के सभी वर्गों के