परिणाम "अहल"
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बचाए अहल-ए-हवस को ख़ुदा मोहब्बत सेकि कम नहीं है मोहब्बत कभी क़ियामत से
अहल-ए-फ़ना को नाम से हस्ती के नंग हैलौह-ए-मज़ार भी मिरी छाती पे संग है
जब अहल-ए-ख़िरद दैर-ओ-हरम ढूँढ रहे थेदीवाने तेरा नक़्श-ए-क़दम ढूँढ रहे थे
हर चाँद है अहल-ए-ज़र्फ़-ओ-नज़र देखते रहेसब उन को हस्ब-ए-ताब नज़र देखते रहे
जान लो अहल-ए-बसीरत जल्वा-ए-ज़ाती है रूहअम्र-ए-रब्बी इस लिए 'आलम में कहलाती है रूह
जो अहल-ए-दिल हैं वो हर दिल को अपना दिल समझते हैंमक़ाम-ए-'इश्क़ में हर गाम को मंज़िल समझते हैं
शरी'अत और हक़ीक़त में हमारे रंग को देखोइधर अहल-ए-फ़ना ठहरे उधर अहल-ए-बक़ा ठहरे
अहल-ए-तदबीर की वामांदगियाँआबलों पर भी हिना बाँधते हैं
कलेजा हाथ से अहल-ए-तमअ के चाक होता हैसदफ़-आसा अगर मुझ को मयस्सर दाना आता है
ज़ुल्म सहते हैं कुछ नहीं कहतेअहल-ए-दिल बे-ज़बान होते हैं
मुझी को देख लो ऐ अहल-ए-महफ़िलसरापा नक़्शा-ए-दिलदार हूँ मैं
देख कर उन के मंगतों की ग़ैरतदंग अहल-ए-करम रह गए हैं
वहीं अहल-ए-दिल को तमाशा बनायाकाली काली ज़ुल्फ़ों के फंदे न डालो
बना कर फ़क़ीरों का हम भेस 'ग़ालिब'तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
सर-बरहना 'ज़हीन'-ए-ख़ाक-नशींअहल-ए-ताज-ओ-सरीर हैं हम लोग
यहाँ पीर-ए-मय-ख़ाना हज़रत हमीं हैंसलामत हैं अहल-ए-मलामत हमीं हैं
न वो अहल-ए-सितम बुलवाए आएँगेसख़्त पत्थर से ज़्यादा है तिरा दिल क़ातिल
क्या करें अहल-ए-नियाज़ अब क्या करेंबे-नियाज़ी उस की 'आदत हो गई
आज़ाद मशाइख़ में 'तुराब' एक न देखाकोई अहल-ए-मलामत हो क़लंदर के बराबर
तमाम शहर में इक दर्द-आश्ना न मिलाबसाए इसलिए अहल-ए-जुनूँ ने वीराने
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