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जले आशियाने जो दिल की तरह चमन से शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठाये कहाँ लगी ये कहाँ लगी कि क़फ़स से आज धुआँ उठा
छुटते ही फिर क़फ़स से लाया गया क़फ़स मेंमुझ को न रास आया गुलशन का आब-ओ-दाना
आँख खोली है तो सय्याद के घर खोली हैहम क़फ़स पर ही नशेमन का गुमाँ रखते हैं
तसव्वुर में जो फूलों का समाँ हैक़फ़स की शाम सुब्ह गुलिस्ताँ है
चमन छूटा तो कैसी क़ैद-ए-हस्तीक़फ़स ख़ाली पड़ा है मैं नहीं हूँ
क़फ़स की तीलियाँ रंगीन क्यूँ हैंयहाँ पे सर को फोड़ा है किसी ने
बहार आख़िर है और मैं बे-पर-ओ-बालक़फ़स से डाक बैठे आशियाँ तक
मैं हूँ क़फ़स में और मिरे ग़म में बाग़बाँकोई नहीं शरीक विदा'-ए-बहार में
ले कर बहार-ए-बुस्ताँ आया है दिल क़फ़स मेंवीराने में आबादी आबादी में वीराना
बहार आते ही कुंज-ए-क़फ़स नसीब हुआहज़ार हैफ़ कि निकला न हौसला दिल का
क़फ़स में कोई तुम से ऐ हम-सफ़ीरोख़बर गुल की हम को सुनाता रहेगा
रूदाद-ए-चमन सुनता हूँ इस तरह क़फ़स मेंजैसे कभी आँखों से गुलिस्ताँ नहीं देखा
ऐ 'वली' लज़्ज़त आज़ाद क़फ़स क्या जानोनौ गिरफ़्तार हो तुम ने अभी क्या देखा है
पर मेरे काट के सय्याद ने इरशाद कियाले क़फ़स खोल दिया जा तुझे आज़ाद किया
क़फ़स में भी न कहीं बिजलियों की यूरिश होबना रहा हूँ तसव्वुर में आशियाने को
मेरी आहों ने उड़ा डाले क़फ़स के टुकड़ेकिस लिए अब मिरे पर खोलने सय्याद आया
सय्याद उस असीर की मजबूरियाँ न पूछबाज़ू हो जिस का बाब क़फ़स से बंधा हुआ
किस तरह फ़रियाद करते हैं बता दो क़ा'एदाऐ असीरान-ए-क़फ़स मैं नौ-गिरफ़्तारों में हूँ
मुतमइन हो ही गए दाम-ओ-क़फ़स में 'साग़र'हम असीरों ने नशेमन को बहुत याद किया
ने तीर कमाँ में है न सय्याद कमीं मेंगोशे में क़फ़स के मुझे आराम बहुत है
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