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कलाम
गुलाबी सीपियों में वो गुहर बन कर चमकता हैगुलिस्ताँ में गुलाब-ओ-नस्तरन बन कर महकता है
अहमद नदीम क़ासमी
कलाम
हुए मदफ़ून-ए-दरिया ज़ेर-ए-दरिया तैरने वालेतमांचे मौज के खाते थे जो बन कर गुहर निकले
अल्लामा इक़बाल
कलाम
दुर्र-ए-मज़मूँ की झड़ी रहती है क्यूँ फिर ये 'हसन'गर मिरी तब-ए'-रवाँ अब्र-ए-गुहर-बार नहीं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
औज-ए-रिफ़'अत का क़मर नख़्ल-ए-दो-'आलम का समरबहर-ए-वहदत का गुहर चश्मा-ए-कस्रत का कँवल
मोहसिन काकोरवी
कलाम
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंगदेखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक