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कलाम
ग़ौसी शाह
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कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में सख़्त मुश्किल हैयहाँ परियों का मजमा' है वहाँ हूरों की महफ़िल है
अकबर लखनवी
कलाम
रौशन जहाँ है जिस से वो महफ़िल तुम्हें तो होदिल जिस को ढूँढता है वो मंज़िल तुम्हें तो हो
बह्ज़ाद लखनवी
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क़ाज़ी उम्राओ अली जमाली
कलाम
ये जहाँ भी तू है इस की आख़िरी मंज़िल भी तूबानी-ए-महफ़िल भी तू है ख़ातिम-ए-महफ़िल भी तू
मयकश अकबराबादी
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फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
लेकर जहाँ के हुस्न को शम्स-ओ-क़मर को क्या करूँमुझ को तो तुम पसंद अपनी नज़र को क्या करूँ