ज़ुल्फ़ों को जहाँ तू लहराए
ज़ुल्फ़ों को जहाँ तू लहराए
मय-ख़ानों में हलचल मच जाए
पीने पे अगर आ जाऊँ मैं
पैमानों में हलचल मच जाए
अंजाम-ए-ख़ुदा जाने क्या हो
उन तीर-ए-नज़र के मारों का
उल्फ़त की नज़र से देखो तो
दीवानों में हलचल मच जाए
साक़ी हो जाम हो मीना हो
और उस पे घटाएँ छाई हों
उस मौक़ा' पे अच्छे अच्छों के
ईमानों में हलचल मच जाए
तूफ़ान उठाना मेरे लिए
मुश्किल ही सही आसान भी है
कश्ती को डुबो दूँ साहिल पर
तूफ़ानों में हलचल मच जाए
बालीं पे 'क़ैसर' की आकर
पर्दा न उठाओ चेहरे से
मुम्किन है निगाहें मिलते ही
अरमानों में हलचल मच जाए
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