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कलाम
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँरोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
कलाम
माहिरुल क़ादरी
कलाम
इकट्ठे हो के हुस्न-ओ-'इश्क़ मेरे दिल में रहते हैंयहाँ लैला-ओ-मजनूँ एक ही महमिल में रहते हैं
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
दिया होता किसी को दिल तो होती क़द्र भी दिल कीहक़ीक़त पोछिए जा कर किसी बिस्मिल से बिस्मिल की
अज्ञात
कलाम
दिल दिलीर करे अचु आशिक, सुस्त यकीन न थीउ तू।टोड़े शक गुमान सभेई, प्रेमी प्यालो पीउ तू।
सचल सरमस्त
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता हैनिकल ऐ सब्र इस घर से कि साहिब-ख़ाना आता है