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कलाम
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी काअगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
कलाम
मिरी ज़ीस्त पुर-मसर्रत कभी थी न है न होगीकोई बेहतरी की सूरत कभी थी न है न होगी
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
ऐ दिल-ए-पुर-सुरूर-ए-मन नाज़ न बन नियाज़ बनसाक़ी-ए-मस्त-ए-नाज़ की आँखों में सरफ़राज़ बन
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
सहबा अकबराबादी
कलाम
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
शौक़-ए-नज़ारा है जब से उस रुख़-ए-पुर-नूर काहै मिरा मुर्ग़-ए-नज़र परवाना शम्अ'-ए-तूर का
इब्राहीम ज़ौक़
कलाम
मय-ए-वहदत से ओ साक़ी लबालब एक साग़र देमैं बंदा तेरा हो जाऊँ तू मतवाला मुझे कर दे