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कलाम
अगर जोगन तुम्हारे दर से ख़ाली हाथ जाएगीतो इस मजबूर की हालत ये दुनिया मुस्कुराएगी
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
कलाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
उस बुत-ए-काफ़िर के दर पे अब तो जाना ही पड़ाहो गया है बस ख़फ़ा मुझ को मनाना ही पड़ा
नियाज़ वज़िरबादी
कलाम
खड़ा हूँ कब से मैं दर पर तिरे मुश्ताक़ दर्शन काइधर भी इक निगाह-ए-लुत्फ़ सदक़ा अपने जोबन का
क़ाज़ी उम्राओ अली जमाली
कलाम
साया-ए-दरगाह-ए-काज़िम हम को क्या कम है 'तुराब'क्यूँ फिरें हम दर-ब-दर ज़िल्ल-ए-हुमा के वास्ते
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
मुझ को काफ़ी है ये संग-ए-दर-ए-जानाना मिरायही का'बा है मिरा और यही बुत-ख़ाना मिरा