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कलाम
पर्दा उठा दुई का 'ख़ादिम' ने तुझ को देखाहम तो हैं एक प्यारे जो कुछ कि है सो तू है
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
कलाम
मन-ओ-तू उठे जहाँ हों हवसें वहाँ कहाँ होंजो दुई के थी लवाज़िम सो रिहाई उन से पाई
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
उठा भरम दुई का हुआ यकता किया साबरी पीत की रीत भईहम गुरु म’आली के सरन पड़े नारायण हरे नारायण हरे
मीराँ भीख
कलाम
अमीर बख़्श साबरी
कलाम
वो 'ऐन उस का जब से है ये ग़ैर उस कातिब से हैउन की दुई मिटना बहुत मुश्किल भी है आसान भी है