परिणाम "निगाह"
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अपनी निगाह-ए-शौक़ को रोका करेंगे हमवो ख़ुद करें निगाह तो फिर क्या करेंगे हम
उन की निगाह-ए-मस्त से मख़मूर हो गएइतने हुए क़रीब कि हम दूर हो गए
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सहीनहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गयालहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया
तिरी निगाह की सर-मस्तियों का क्या कहनाकि मुझ ग़रीब को वहशी बना के छोड़ दिया
उमीद-वार हैं हर सम्त आशिक़ों के गिरोहतिरी निगाह को अल्लाह दिल-नवाज़ करे
उसे ख़बर ही नहीं कितनी बार उट्ठी हैमेरी निगाह-ए-मोहब्बत से क्यूँ हिसाब किया
निगाह-ए-मस्त को मसरूफ़-ए-नाज़ रहने देकुछ और रोज़ मुझे पाक-बाज़ रहने दे
तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न थाआँखों को वर्ना जल्वा-ए-जानाँ कहाँ न था
जल्वा कोई निगाह में बातिल नहीं रहाअब इम्तियाज़-ए-लैला-ओ-महमिल नहीं रहा
पहले निगाह फिर मिरी दुश्मन हया हुईवो एक थी ये दूसरी ऐ दिलरुबा हुई
मैं जिस निगाह पे दोनों जहाँ वार आयाउसे न मेरी मोहब्बत पे ए'तिबार आया
दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गईदोनों को इक अदा में रज़ा-मंद कर गई
क़ज़ा भी सदक़े होती है निगाह-ए-तीर क़ातिल के‘शहादत’ सर कटाने के लिए तय्यार कैसी है
निगाह वाले न कुछ पाँव सर को देखते हैंवो तर्ज़-ए-दीदा-ए-ईं नज़र को देखते हैं
निगाह-ए-मस्त से ये क्या पिला दिया तू नेरगों में शोर-ए-अनल-हक़ उठा दिया तू ने
क़ज़ा भी सदक़े होती है निगाह-ए-तेज़ क़ातिल केशहादत सर कटाने के लिए तय्यार कैसी है
पड़ी निगाह तुझी पर तमाम महफ़िल मेंनिगाह-ए-हुस्न मिरा इंतिख़ाब देख लिया
तेरी निगाह से तुझे देखा करूँ 'ज़हीन'अपनी निगाह से भी छुपाया करूँ तुझे
निगाह मिलते ही कैफ़ियतों में डूब गयानिगाह में तिरी कैफ़-ए-शराब देख लिया
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