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कलाम
बुतान-ए-माह-वश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैंकि जिस की जान जाती है उसी के दिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
कलाम
न तू माह बन के फ़लक पे रह न तू फूल बन के चमन में आये तमाम जल्वे समेट कर किसी दिल-गुदाज़-ए-फबन में आ
एहसान दानिश
कलाम
सहबा अकबराबादी
कलाम
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
ये असीर-ए-रंज-ओ-राहत में असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-जानानाभला क्या समझ सकेगा मुझे ना समझ ज़माना
अब्दुल हादी काविश
कलाम
मय-ए-वहदत से ओ साक़ी लबालब एक साग़र देमैं बंदा तेरा हो जाऊँ तू मतवाला मुझे कर दे