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कलाम
दर-हक़ीक़त राज़-दार-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद हूँ
देखने को हर क़दम पर ठोकरें खाता हूँ मैं
अमीर बख़्श साबरी
कलाम
दर-हक़ीक़त राज़-दार-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद हूँ
देखने को हर क़दम पर ठोकरें खाता हूँ मैं
अमीर बख़्श साबरी
कलाम
लाला-ओ-बर्ग-ओ-गयाह अंजुम-ओ-ख़ुर्शीद-ओ-माह
मंज़िल-ए-मक़्सूद तक सैंकड़ों हैं संग-ए-राह
सीमाब अकबराबादी
कलाम
हमें राह-ए-तलब में ख़ाक हो जाने से मतलब है
क़दम पहुँचे न पहुँचे मंज़िल-ए-मक़्सूद पर अपना
बर्क़ देहलवी
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहीं
मस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी है
तर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है
शकील बदायूँनी
कलाम
जुनूँ वज्ह-ए-शिकस्त-ए-रंग-ए-महफ़िल होता जाता है
ज़माना अपने मुस्तक़बिल में दाख़िल होता जाता है