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कलाम
कहाँ हैं इंतिहा-ए-ज़ौक़-ए-कामिल देखने वालेहमें देखें कि हम हैं हुस्न-ए-बातिल देखने वाले
सीमाब अकबराबादी
कलाम
दिमाग़-ओ-रूह यकसाँ चाहिएँ इंसान-ए-कामिल मेंये क्या तक़्सीम-ए-नाक़िस है ख़ुदी सर में ख़ुदा दिल में
सीमाब अकबराबादी
कलाम
अलिफ़ इल्ला चम्बे दी बूटी मुर्शिद मन विच लान्दा हूजिस गत इते सोहणा राज़ी ओहो गत सिखांदा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
सुल्तान बाहू
कलाम
मुर्शिद हादी सबक़ पढ़ाया पढ़यों बिना पढीवे हूउँगलियाँ विच कंनां दित्तियां, सुणयों बिना सुणीवे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मुर्शिद है शाहबाज़ इलाही रलया संग हबीबाँ हूतक़दीर इलाही छिक्कियां डोराँ मिलसी नाल नसीबाँ हू
सुल्तान बाहू
कलाम
ख़ुदा को मैं ने देखा है मेरे मुर्शिद की सूरत मेंहदीस-ए-मन रआनी है नबी-अल्लाह की सूरत में
गुलाम रसूल नाइब
कलाम
मुर्शिद मैनूँ हज्ज मक्के दा रहमत दा दरवाज़ा हूकराँ तवाफ़ दुआले क़िबले हज्ज होवे नित्त ताज़ा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
जद दा मुर्शिद कासा दितड़ा तद दी बेपरवाही हूकी होया जे रातीं जागें मुर्शिद जाग न लाई हू