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कलाम
निकल कर ख़ानक़ाहों से अदा कर रस्म-ए-शब्बीरीकि फ़क़्र-ए-ख़ानक़ाही है फ़क़त अंदोह-ओ-दिलगीरी
अल्लामा इक़बाल
कलाम
जवानी ख़्वाब की सी बात है दुनिया-ए-फ़ानी मेंमगर ये बात किस को याद रहती है जवानी में
सीमाब अकबराबादी
कलाम
दुनिया है ये अंदाज़-ए-शबिस्ताँ कोई दिन औरअच्छा तो फिर इक ख़्वाब-ए-परेशाँ कोई दिन और
सीमाब अकबराबादी
कलाम
न तू माह बन के फ़लक पे रह न तू फूल बन के चमन में आये तमाम जल्वे समेट कर किसी दिल-गुदाज़-ए-फबन में आ
एहसान दानिश
कलाम
यही इक आरज़ू रहती है बेकल दिल की दुनिया मेंकि गुम हो जाऊँ 'एहसाँ' जल्वा-ए-जान-ए-तमन्ना में