यही इक आरज़ू रहती है बेकल दिल की दुनिया में
यही इक आरज़ू रहती है बेकल दिल की दुनिया में
कि गुम हो जाऊँ 'एहसाँ' जल्वा-ए-जान-ए-तमन्ना में
जहाँ ख़ौफ़-ए-फ़ना की तीरगी मफ़क़ूद होती है
जहाँ परवाज़-ए-फ़िक्र-ओ-शौक़ ला-महदूद होती है
जहाँ होते नहीं दुनिया-ए-ग़म परवर के नज़्ज़ारे
जहाँ ज़र्रों के दिल में परवरिश पाते हैं सय्यारे
जहाँ चारों तरफ़ तनवीर ही तनवीर होती है
'इबादत की जहाँ बहजत फ़ज़ा तफ़्सीर होती है
जहाँ मसरूफ़ रहती है नज़र आईना-बीनी में
जहाँ सूरज चमकते हैं तबस्सुम आफ़रीनी में
जहाँ पा-ए-ख़िरद रहता नहीं ज़िंदाँ ता'अत में
अनल-हक़ ही अनल-हक़ है जहाँ बज़्म-ए-समा’अत में
जहाँ छूती नहीं बाद-ए-फ़ना दामान-ए-हस्ती को
जहाँ हुस्न-परस्तिश जानते हैं ख़ुद-परस्ती को
जहाँ नापैद बहर-ए-बे-नियाज़ी का किनारा है
जहाँ तख़्लीक़-ए-'आलम इक तख़य्युल का इशारा है
जहाँ झुकता है सर ज़ो’म-ओ-ग़ुरूर-ए-आसमानी का
उबलता है जहाँ शफ़्फ़ाफ़ चश्मा ज़िंदगानी का
वहीं दरबार है उस कुंतो कंज़न कहने वाले का
मिरी आँखों से ओझल मेरे दिल में रहने वाले का
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