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कलाम
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और हैसर-ए-आईना मिरा 'अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
सलीम कौसर
कलाम
हरम और दैर के कतबे वो देखे जिस को फ़ुर्सत हैयहाँ हद्द-ए-नज़र तक सिर्फ़ उ'न्वान-ए-मोहब्बत है
सीमाब अकबराबादी
कलाम
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गईदिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
करें हम किस की पूजा और चढ़ाएँ किस को चंदन हमसनम हम दैर हम बुत-ख़ाना हम बुत हम बरहमन हम
मीर शमसुद्दीन फ़ैज़
कलाम
ख़ुद अदा मरती है जिस पर वो अदा कुछ और हैहै वफ़ा भी जिस पे सदक़े वो जफ़ा कुछ और है