याँ दिल में ख़याल और है वाँ मद्द-ए-नज़र और
याँ दिल में ख़याल और है वाँ मद्द-ए-नज़र और
है हाल तबी’अत का इधर और उधर और
हर वक़्त है चितवन तिरी ऐ शो'बदा गर और
इक दम में मिज़ाज और है इक पल में नज़र और
नाकारह-ओ-नादान कोई मुझ सा भी न होगा
आया न ब-जुज़ बे-हुनरी कोई हुनर और
दिल दे के लिया रंज-ओ-अलम वाए री क़िस्मत
हम समझे थे कुछ और हुआ हाय मगर और
जीता न जिए कोई भी जाँ-बर न हो कोई
दो-चार सितमगार हों तेरे से अगर और
और और हैं आप आप हैं क्या आप से निस्बत
हों लाख ज़माने में अगर रश्क-ए-क़मर और
ऐ 'दाग़' मय-'इश्क़ से क्या ज़हर को निस्बत
है इस में असर और वो रखता है असर और
- पुस्तक : Guldasta-e-Qawwali (पृष्ठ 17)
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