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कलाम
दिखा कर रू-ए-अनवर ले उड़ा वो दिल को पहलू सेसमाअ'त क्यूँ न होगी है वक़ूआ रोज़-ए-रौशन का
क़ाज़ी उम्राओ अली जमाली
कलाम
नुमायाँ कर दिया उस ने बहार-ए-रू-ए-ख़ंदाँ कोकि दी नग़्मे को मस्ती रंग कुछ सेहन-ए-गुलिस्ताँ को
असग़र गोंडवी
कलाम
मुल्ला आरीफ़ ख़ैराबादी
कलाम
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
कलाम
अगर जोगन तुम्हारे दर से ख़ाली हाथ जाएगीतो इस मजबूर की हालत ये दुनिया मुस्कुराएगी
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
कलाम
ये महफ़िल है यहाँ पर कौन रोकेगा ज़बाँ मेरीतुम्हें दिल थाम कर सुनना पड़ेगी दास्ताँ मेरी