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कलाम
ग़ौसी शाह
कलाम
अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भीरात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी
आरज़ू लखनवी
कलाम
कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में सख़्त मुश्किल हैयहाँ परियों का मजमा' है वहाँ हूरों की महफ़िल है
अकबर लखनवी
कलाम
रौशन जहाँ है जिस से वो महफ़िल तुम्हें तो होदिल जिस को ढूँढता है वो मंज़िल तुम्हें तो हो
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
क़ाज़ी उम्राओ अली जमाली
कलाम
ये जहाँ भी तू है इस की आख़िरी मंज़िल भी तूबानी-ए-महफ़िल भी तू है ख़ातिम-ए-महफ़िल भी तू